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दूर होने दो अँधेरा / कैलाश गौतम

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दूर
 
होने दो अँधेरा
 
अब घरों से
 
दूर होने दो।
 
 
और ताज़ा कर सके
 
माहौल को जो
 
साज़ ऐसा दो
 
बाँध ले
 
गिरते समय के मूल्य को
 
अंदाज़ ऐसा दो
 
आग बोओ
 
और काटो
 
रोशनी भरपूर होने दो।।
 
 
हम सँवारेंगे
 
हरे पन्ने
 
गुलाबी धूप के अक्षर
 
दूर तक
 
गूँजे दिशाओं में
 
पसीने के उभरते स्वर
 
जल खिलेगा
 
और तोड़ो पर्वतों को
 
चूर होने दो।।