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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

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ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
22.
बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखी साजन न सखी आम।।
 
23.
नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखी साजन न सखी चंदा।।
 
24.
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखी साजन न सखी मैंना।।
 
25.
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखी साजन न सखी तोता।।
</poem>
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