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और मैं / जया जादवानी
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21:29, 18 नवम्बर 2009
और मैं ऋतु पूरी गुज़ार आई
शाखें हुईं नंगी पाले मारे मौसम में
कर्ज
कर्ज़
था आत्मा पर, देह उतार आई।
</poem>
अनिल जनविजय
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