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गौण, अतिशय गौण है, तेरे विषय में
दूसरे क्या बोलते, क्या सोचते हैं।
मुख्य है यह बात, पर, अपने विषय में
तू स्वयं क्या सोचता, क्या जानता है।
::(२)
उलटा समझें लोग, समझने दे तू उनको,बहने दे यदि बहती उलटी ही बयार है,आज न तो कल जगत तुझे पहचानेगा ही,अपने प्रति तू आप अगर ईमानदार है।
</poem>
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