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प्रथम अध्याय
<span class="upnishad_mantra">धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१-१॥</span>
धर्म सुखेत, कहौ कुरु खेत में,
संजय ! जुद्धन चाह धरै जू.
पाण्डव, मोरे सुतन सब एकहिं,
ठांव खड़े कहौ काह करें जू
<span class="upnishad_mantra">दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥१-२॥</span>
दिव्य नयन माहीं संजय ,
जस देख रहे, तस् बोल रहे,
दुरजोधन पाण्डुन व्यूह मयी,
सेना लखि द्रोण सों बोल रहे
<span class="upnishad_mantra">पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥१-३॥</span>
हे गुरुवर ! व्यूहमयी ठाड़ी,
पाण्डु के पुत्रन की सेना.