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15:57, 22 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
}}
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<poem>
कैसा ये वक़्त है?
थककर चुप बैठे सारे राग
घुटने मोड़े अवसाद मे
सिर्फ़ कभी-कभी अन्तरिक्ष में गुमी धुन कोई
खो जाती ज़रा-सी झलक दिखा
कोई सुई भी तो नहीं
किसी ख़याल की
सन्नाटे के धागों को बुनने के लिए
बर्फ़ में काँप रहा
कोरा बदन सफ़ेद
ख़ुदाया! सुलगा दे कोई
इस एकान्त की भट्टी
गर्म होना चाहता है
यह माटी का बदन
ढहने से पहले...।
</poem>