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16:15, 22 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
}}
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<poem>
हो सकता है कि तुम्हें सुनाई दे
आत्मा का अनहद नाद
शून्य में झरती पत्ती चुपचाप
धूप गिलहरी का कूदकर
मुँडेर पर बैठना बिलाना वृक्ष के अन्धेरे में
चन्द्रमा का उतरना
सूनी बावड़ी में और बने रहना
आकाश का उतना सीढ़ियाँ अदृश्य
छाती में खो जाना ख़ामोश
ओस का फिसलना दूब की नोक पर
चित्र बना देना स्पष्ट
एक तारे का टूटकर गिरना
मनौती की माँग में रक्ताभ
इठला कर देखना फूल का
पास आती तितलियों को
तिनके का उत्सुक बाहें फैला
पुकारना चिड़िया को पूरी आवाज़ में
हँसना चट्टान फोड़कर बाहर आए
एक नन्हे किसलय का
हो सकता है तुम्हें दिखाई दे
कुछ न कुछ होने की कगार पर
हो सकता है प्रेम अभी गया न हो
बीच राह में तुम्हें छोड़कर...।
</poem>