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16:29, 22 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
}}
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<poem>
इतना ताप हो हड्डियों में
कड़ाके की ठंड में सुबह सवेरे
गुनगुनाती धूप का सेंक
धीरज इतना कि
अनन्त में उड़ने से पहले
देखूँ आकाश का विस्तार
रहूँ उड़ती
साहस इतना कि
जितनी बार लहर फेंके बाहर
लगाऊँ छलाँग दुगनी तेज़ी से
फिर भँवर में
प्रेम इतना कि जब
टूटें नश्वर घरौंदे रेत के
बनाऊँ फिर-फिर
प्रार्थना इतनी कि
अपनी इस लड़ाई में
हारूँ, मिटूँ, जन्म लूँ फिर अपनी राख से
सिर्फ़ इतना ही कर सकती हूँ मैं
नश्वरता के खिलाफ़...।
</poem>