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16:39, 22 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
}}
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<poem>
ज़रा-सा छुओ तो
पूरा छूने की चाह
एक चिन्गारी से
दहकता है जंगल
अंजुरी भर पियो तो
समुद्र चाहिए पूरा
पृथ्वी पूरी, पूरा सूर्य
सिर्फ़ ज़रा-सी उड़ान और
आसमाँ चाहिए पूरा
न पीने को, न जीने को
चाहिए ख़ुद को डुबोने को।
</poem>