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15:44, 23 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जया जादवानी
|संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य / जया जादवानी
}}
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<poem>
ये जो टेढ़े-मेढ़े दिखाई दे रहे
हवा के झोंके-से मनचाहे
न पथ सुनिश्चित
न डगर जानी-पहचानी
लगा भी नहीं
सोचा भी नहीं
कि कर क्या रहे तुमसे बिछड़कर
बिखर गए धुएँ से जाने कहाँ
लगा तो दिया था निशान नियति ने
उस द्वार पर कि भूलूँ न
फिर भी हुआ क्या आवारगी बनी नसईब
देख रही हूँ हैरान हो
निशाँ अपने क़दमों के
ऊपर से...।
</poem>