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01:51, 25 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>
तुमने कहा अरे!
अरे क्या! मैंने कहा
फिर लिया लेखा जोखा आपस में हमने
आपस के छूटे हुए दिनों का
तुमने पिलाया पानी
मैंने सोचा कब छूटेगा तुम्हारा बदन
दिन भर के काम से
</poem>