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02:04, 25 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>उम्र दर उम्र
ढूँढते हैं
बढ़ती उम्र रोकने का जादू
भरे छलकते प्याले हैं
एक-एक टूटता प्याला
लड़खड़ाते सोच सोच कि
टूटने से पहले प्यालों में
रंग कुछ और भी होने थे
टूटता हर प्याला
बचे प्यालों से होता बेहतर
झुर्रियों के साथ इकट्ठे बचते प्याले
डबल चार सौ बीस का जिन पर नंबर
जितनी बढ़ती तमन्ना जीने की
उतनी ही होती तकलीफ जीने की
टूटी सोच से डरे घबराए
बदतर प्याले ढोने को लाचार
गिरते और गहरे गड्ढों में
उम्र पर हँसने की सलाह देते हैं वैज्ञानिक।
</poem>