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02:36, 25 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>कुछ पन्ने बकवास के लिए होते हैं
जो कुछ भी उन पर लिखा बकवास है
वैसे कुछ भी लिखा बकवास हो सकता है
बकवास करते हुए आदमी
बकवास पर सोच रहा हो सकता है
क्या पाकिस्तान में जो हो रहा है
वह बकवास है
हिंदुस्तान में क्या उससे कम बकवास है
क्या यह बकवास है
कि मैं बीच मैदान हिंदुस्तान और पाकिस्तान की
धोतियाँ खोलना चाहता हूँ
निहायत ही अगंभीर मुद्रा में
मेरा गंभीर मित्र हँस कर कहता है
सब बकवास है
बकवास ही सही
मुझे लिखना है कि
लोगों ने बहुत बकवास सुना है
युद्ध सरदारों ध्यान से सुनो
हम लोगों ने बहुत बकवास सुना है
और यह बकवास नहीं कि
हम और बकवास नहीं सुनेंगे।</poem>