1,802 bytes added,
06:41, 26 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>बहुत दिनों के बाद याद नहीं रहेगा
कि आज बिजली गई सुबह सुबह
गर्मी का वर्त्तमान और कुछ दिनों पहले के
नाभिकीय विस्फोटों की तकलीफ के
अकेलेपन में और भी अकेलापन चाह रहा
आज की तारीख
आगे पीछे की घटनाओं से याद रखी जाएगी
धरती पर पास ही कहीं जंग का माहौल है
एक प्रधानमंत्री संसद में चिल्ला रहा है
कहीं कोई तनाव नहीं
वे पहले आस्तीनें चढ़ा रहे थे
आज कहते हैं कि चारों ओर शांति है
डरी डरी आँखें पूछती हैं
इतनी गर्मी पोखरन की वजह से तो नहीं
गर्मी पोखरन की वजह से नहीं होती
पोखरन तो टूटे हुए सौ मकानों और
वहाँ से बेघर लोगों का नाम है
उनको गर्मी दिखलाने का हक नहीं
अकेलेपन की चाहत में
बच्ची बनना चाहता हूँ
जिसने विस्फोटों की खबरें सुनीं और
गुड़िया के साथ खेलने में मग्न हो गई</poem>