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हमसफ़र / रमा द्विवेदी

No change in size, 02:20, 5 दिसम्बर 2009
क्या दायित्वों के बोझ से कोई,<br>
अपनी क्षणिक खुशियों को छोड़ आए....।<br><br>
क्या इंसान का संबंधों के सिवा अपना अस्तित्व नहीं?,<br>
एक क्षण भी अपनी खुशी से जीने का हक़ नहीं?<br>
दायित्वों की बलिवेदी पर,क्यों?<br>
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