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{{KKRachna
|रचनाकार= हसरत मोहानी
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
हाले-मज़बूरिए-दिल<ref >दिल की मजबूरी की हालत</ref> की निगराँ<ref >देखने वाली</ref> ठहरी है
देखना वह निगहे-नाज़ कहाँ ठहरी है

यार बे-नामो-निशाँ था सो उसी निस्बत से
लज़्ज़ते-इश्क़ भी बे-नामो-निशाँ ठहरी है

ख़ैर गुज़री कि न पहुँची तेरे दर तक वर्ना
आह ने आग लगा दी है जहाँ ठहरी है

दुश्मने-शौक़ कहे और तुझे सौ बार कहे
इसमें ठहरेगी न 'हसरत' की ज़बाँ ठहरी है


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</poem>