गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ख़ू समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की / हसरत मोहानी
1 byte added
,
08:43, 5 दिसम्बर 2009
शमअ़-महफ़िल की तरफ़ भीड़ है परवानों की
राज़े-ग़म
सेहमें
से हमें
आगाह किया ख़ूब किया
कुछ निहायत<ref >हद</ref> ही नहीं आपके अहसानों की
गंगाराम
376
edits