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|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>ज्योति कलश छलके - ४<br>हुए गुलाबी, लाल सुनहरे<br>रंग दल बादल के<br>ज्योति कलश छलके<br><br>
घर आंगन वन उपवन उपवन<br>करती ज्योति अमृत के सींचन<br>मंगल घट ढल के - २<br>ज्योति कलश छलके<br><br>
पात पात बिरवा हरियाला<br>धरती का मुख हुआ उजाला<br>सच सपने कल के - २<br>ज्योति कलश छलके<br><br>
ऊषा ने आँचल फैलाया<br>फैली सुख की शीतल छाया<br>नीचे आँचल के - २<br>ज्योति कलश छलके<br><br>
ज्योति यशोदा धरती मैय्या<br>नील गगन गोपाल कन्हैय्या<br>श्यामल छवि झलके - २<br>ज्योति कलश छलके<br><br>
अम्बर कुमकुम कण बरसाये<br>फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये<br>बिन्दु तुहिन जल के - २<br>ज्योति कलश छलके <br><br/poem>
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