|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा
}}
शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर<br>{{KKCatKavita}}हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी<br>{{KKCatNavgeet}}फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर<brpoem>हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
बहुत दिन लोहित रहा शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभकी डगर हिम तले जो खो गयी थीं, बहुत दिन शीत के डर सो गयी थी अवनि हतप्रभ<br>शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर<br>फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
पक्ष अँधियारा जगत काबहुत दिन लोहित रहा नभ, जब मनुज अघ में निरत था<br>बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर<br>शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
विविधता के सत विमर्षों पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में उत्पछता रहा वर्षों<br>निरत था पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में जाये निखर<br>शुक्ल पर हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो विविधता के सत-रंग मिलकर<br>विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों गगन पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर<br>जाये निखर हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर<br><br>
इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा<br>उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर<br>हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर <br><br/poem>