1,132 bytes added,
14:40, 11 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार =मनमोहन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ
ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी
याद नहीं निमिष भर की रात थी
या कोई पूरा युग था
स्मृति थी
या स्पर्श में खोया हाथ था
किसी गुनगुने हाथ में
एक तकलीफ थी
जिसके भीतर चलता चला गया
जैसे किसी सुरंग में
अजीब जिद्दी धुन थी
कि हारता चला गया
दिन को खूँटी पर टांग दिया था
और उसके बाद कतई भूल गया था
सिर्फ बोलता रहा
या सिर्फ सुनता रहा
ठीक-ठीक याद नहीं
</poem>