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अनंतिम / सुधीर सक्सेना

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कुछ भी अंतिम नहीं
 
कुछ भी नहीं अंतिम,
 
शेष है एक घड़ी के बाद दूसरी घड़ी,
 
उमंग के बाद ललछौंही उमंग,
 
उल्लास के बाद रोमिल उल्लास,
 
सैलाब के बाद भी एक बूंद,
 
आबदार कहीं दुबका हुआ एक कतरा ख़ामोश
 
बची है पत्तियों की नोंक के भी आगे सरसराहट,
 
पक्षियों के डैनों से आगे भी उड़ान,
 
पेंटिंग के बाहर भी रंगों का संसार,
 
संगीत के सुरों के बाहर संगीत,
 
शब्दों से पर निःशब्द का वितान
 
ध्वनियों से पर मौन का अनहद नाद
 
कोई भी ग्रह अंतिम नहीं आकाशगंगा में,
 
कोई भी आकाशगंगा अंतिम नहीं ब्रह्मांड में,
 
अचानक नमूदार होगा कहीं भी कोई ग्रह
 
अंतरिक्ष में अचानक
 
अचानक फूट पड़ेगा मरू में सोता
 
अचानक भलभला उठेगा ज्वालामुखी में लावा
 
अचानक कहीं होगा उल्कापात
 
तत्वों की तालिका में बची रहेगी
 
हमेशा जगह किसी न किसी
 
नए तत्व के लिए
 
शब्दकोश में नए शब्दों के लिए
 और कविताओं की दुनियाँ में नई कविता के लिए.लिए।</poem>
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