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हम कहते हैं बुरा न मानो,यौवन मधुर सुनहली छाया।:सपना है, जादू है, छल है ऐसा:पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,:मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा।::यह गुदगुदी, यही बीमारी,::मन हुलसावे, छीजे काया।हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।:वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,:वह आया सपने में, मन में, उठकर,:वह आया साँसों में से रुक-रुककर।::हो न पुरानी, नई उठे फिर::कैसी कठिन मोहनी माया!हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।
सपना है, जादू है, छल है ऐसापानी पर बनती'''रचनाकाल: खण्डवा-मिटती रेखा-सा,मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।यह गुदगुदी, यही बीमारी,मन हुलसावे, छीजे काया। हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,वह आया सपने में, मन में, उठकर,वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर। हो न पुरानी, नई उठे फिरकैसी कठिन मोहिनी माया! हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया।१९४०
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