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गगन पर दो सितारे: एक तुम हो,
धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो,
‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो,
::रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा,
::कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा ।
::कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये,
::हृदय के होड़-सी दृढ वृत्तियाँ ये,
::तिरंगे की तरंगों पर चढ़ाते,
::कि शत-शत ज्वार तेरे पास आते ।
::तुझे सौगंध है घनश्याम की आ,
::तुझे सौगंध है भारत-धाम की आ,