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निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर
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13:46, 13 दिसम्बर 2009
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<poem>
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
जहां न तनिक न्याय विचार ।।<br />
RAM SARAN YADAV
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