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'''आज़ादी की पचासवीं सालगिरह पर एक कविता'''
नाश्ते के लिए भुनी हुई स्त्री का गोश्त लाया जाए
हाथ धोने के लिए अगवा किये गए
और हाहाकार के पचास वर्ष पूरे हुए
परेड की सलामी लेने के लिए तैयार हो रहे हैं
महामहिमरचनाकाल : 14-15 अगस्त 1997 , मध्य रात्रि ,विदिशा '''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''</pre>
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