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{{KKRachna
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी
|संग्रह= समर्पण / माखनलाल चतुर्वेदी
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संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री।री,
दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री।
:गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में,:निकल पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में,:ऋतु में और ऋचा में किसके कसके रिमझिम-रिमझिम बरसन, झांकी ऐसी सजी झूलना भी जी भूलै री।री,
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
 :रूठन में पुतली पर जी को की जूठन डोलै री,:अनमोली साधों में मुरली मोहन बोलै री,करताल :करतालन में बंध्यों बँध्यो न रसिया, वह तालन में दीख्योंदीख्यो
भागूँ कहाँ कलेजौ कालिंदी मैं हूलै री।
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
 :नभ के नखत उतर बूँदों में बागों फूल उठे री,:हरी-हरी डालन राधा माधव से झूल उठे री,:आज प्राण प्रणव ने प्रणय भीख से कहा कि नैन उठा तो, साजन दीख न जाय संभालो जरा दुकूलै री।री,दिन तो दिन, कलमंुही कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री,
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।
</poem>
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