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ति-रंगा / कविता वाचक्नवी

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ले जिसे अभिमन्यु
जूझा था समर में,
::: है यही वह चक्र जिसने ::: क्रूरता के रूप कुत्सित ::: कंस या शिशुपाल की ::: ग्रीवा गिराई।
हम सदा से