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द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र / सुमित्रानंदन पंत
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08:49, 19 दिसम्बर 2009
::जग कर जग का पिक, मतवाली
::निज अमर प्रणय-स्वर मदिरा से
::भर दे फिर नव-युग की प्याली!
'''रचनाकाल: फरवरी’१९३४'''
</poem>
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