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14:38, 20 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
कौन ले जा रहा है मनुष्य को
सामूहिक आत्मघात की दिशा में बिला झिझक?
सभ्यता को
ध्वंसावशेषों के हवाले करना चाहता है कौन?
भाषाओँ को
हथियारों में ढाल रहा है कौन?
कौन प्रक्षेपास्त्रों में तब्दील कर रहा है
संस्कृतियों को?
जीवन-शैलियों को
साम्प्रदायिकता के हलाहल का रूप दे रहा है कौन?
विज्ञान के
विनाशकारी उपयोग का
सपना देखने वाला कौन है सत्ताओं के सिवा
इस दुनिया में?
</poem>