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सरोज स्मृति / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / पृष्ठ १
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16:30, 25 अप्रैल 2008
मैंने कुछ, अहरह रह निर्भर<br>
ज्योतिस्तरणा के चरणों पर।<br>
जीवित-कविते, शत-
शत
शर
-जर्जर<br>
छोड़ कर पिता को पृथ्वी पर<br>
तू गई स्वर्ग, क्या यह विचार --<br>
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125.18.17.16