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...के नाम / अलेक्सान्दर पूश्किन
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06:45, 25 दिसम्बर 2009
पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे
सम्मुक
सम्मखु
आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
मानो उड़ती-सी परछाईं।
अनिल जनविजय
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