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अंधेरा और रोशनी-3 / गिरिराज किराडू
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05:31, 26 दिसम्बर 2009
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"जिसे बुहार कर रख दिया उसे कहीं सम्भाल कर भी रक्खा या नहीं ?
"और हाँ, ये तीलियाँ मुझे सिर्फ़ सिगरेट जलाने के लिए ही नहीं चाहिए होतीं ।
समझीं !"
</poem>
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