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क्या तुमने भी सुना / मोहन राणा

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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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चलती रही सारी रात
 
तुम्हारी बेचैनी लिज़बन की गीली सड़कों पर
 
रिमझिम के साथ
 
मूक कराह कि
 
जिसे सुन जाग उठा बहुत सबेरे,
 
कोई चिड़िया बोलती झुटपुटे में
 
जैसे वह भी जाग पड़ी कुछ सुनकर
 
सोई नहीं सारी रात कुछ देखकर बंद आँखों से !
 
चलती रही तुम्हारी बेचैनी
 
मेरे भीतर
 
टूटती आवाज़ समुंदर के सीत्कार में
 
उमड़ती लहरों के बीच,
 
चादर के तहों में करवट बदलते
 
क्या तुमने भी सुना उस चिड़िया को
 '''रचनाकाल: 6.4.2002 सज़िम्ब्रा, पुर्तगाल</poem>
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