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आज का दिन / लीलाधर जगूड़ी

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|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
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क्या यकीन किया जा सकता है
 
कि आज का दिन भी ऐतिहासिक होगा
 
अगर आज भी किसी डाक्टर ने भ्रूण का लिंग बताने
 
से इन्कार किया है
 
अगर आज कहीं नहीं हुई कन्या-भ्रूण-हत्या
 
तो आज का दिन ऐतिहासिक हो सकता है
 
आज का दिन इस लिए भी ऐतिहासिक हो सकता है
 
क्योंकि पूरे दाँत खोलकर हँसती हुई ग्यारह वर्ष
 
की लड़की
 
अकेले साइकिल सीखने निकली है
 
अनजान शहर में अकेली औरत ने
 
आफ़िस जाती किसी अकेली औरत से
 
ऐसे पुरुष का पता पूछा
 
जिसे पूछने वाली के सिवा कोई नहीं जानता
 
सोचने की बात यह है कि आज के दिन
 
अकेली औरत अगर सुरक्षित है
 
तो आज के दिन को ऐतिहासिक होने से कोई
 
रोक ही नहीं सकता
 
विश्वसनीय सूत्रों से थोड़ी आश्चर्यजनक
 
ख़बर से भी
 
मैं आज के दिन को ऐतिहासिक मानता हूँ
 
कि छ: महीने की जिस बच्ची ने बिस्तर पर
 
आधी पल्टी ली थी और चोट खाई थी
 
आज उसी सात महीने की बच्ची ने
 
पहली बार पूरी पल्टी ली और चोट नहीं खाई
 
आज का दिन ऐतिहासिक ही नहीं अद्भुत भी है
 
पल्टी खाने के बाद सुना कि वह ख़ुद हँस भी दी
 
आज एक और घटना भी हुई है
 
जिसका मैं ख़ुद गवाह हूँ
 
कि साइकिल सीखने वाली ग्यारह वर्ष की
 
अकेली लड़की
 
चोट खा कर भी मुस्कुराती हुई लौटी है
 
अपने को हर जगह से बेफ़िक्र झाड़ती हुई
 
यक़ीन मानिए
 
आज का दिन कहीं सचमुच ऐतिहासिक न हो!
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