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ऐसी भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं <br>
ज़र्रों को महरमेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़मत को चार चाँद <br>
ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
आगे क़दम बढ़ायें जिंहें जिन्हें सूझता नहीं <br>
रौशन चिराग़-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़ <br>
काँटों से ही भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर <br>