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जाके लिए घर आई घिघाय / बिहारी
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05:44, 28 दिसम्बर 2009
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।
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