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रात कहाँ बीते / कुँअर बेचैन

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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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पेटों में अन्न नहीं भूख
 
साहस के होठ गए सूख
 
खेतों के कोश हुए रीते
 
जीवन की रात कहाँ बीते?
 
माटी के पाँव फटे
 
तरुवर के वस्त्र
 
छीन लिए सूखे ने
 
फ़सलों के शस्त्र
 
हाय भूख-डायन को
 
आज़ कौन जीते?
 
हड्डी की ठठरी में
 
उलझी है साँस
 
मुट्ठी भर भूख और
 
अंजलि भर प्यास
 
बीता हर दिन युग-सा
 
जीवन-विष पीते।
 
हृदयों के कार्यालय
 
आज हुए बंद
 
और न अब ड्यूटी का
 
तन ही पाबंद
 
साँसों की फा़इल पर
 
बँधे लाल फी़ते।
 '''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br/poem><br>'''''
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