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मेरे कैद देश की कविता / रेने देपेस्त्र
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07:14, 2 जनवरी 2010
|रचनाकार=रेने देपेस्त्र
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उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी
कि मानवता का सुनहरा अनाज उपज सके।
'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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