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याद करना हर घडी़ उस यार का / वली दक्कनी
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17:23, 24 दिसम्बर 2006
दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का <br><br>
क्या कहे
तारिफ़
तारीफ़
दिल है बेनज़ीर <br>
हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-इसरार का <br><br>
ऐ "वली" हो ना स्रिजन पर निसार <br>
मुद्द'
अ
आ
है चश्म-ए-गौहर बार का <br><br>
Anonymous user
घनश्याम चन्द्र गुप्त