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साथी / रामधारी सिंह "दिनकर"
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06:35, 7 जनवरी 2010
गरजते शेर आये, सामने फिर भेड़िये आये,
नखों को
तज
तेज
, दाँतों को बहुत तीखा किये आये।
मगर, परवाह क्या? हो जा खड़ा तू तानकर उसको,
छिपी जो हड्डियों में आग-सी तलवार है साथी।
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