1,009 bytes added,
13:56, 8 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|संग्रह=डॉ० कुंवर बैचेन के नवगीत / कुँअर बेचैन
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
जिंदगी की लाश
ढकने के लिए
गीत के जितने कफ़न हैं
हैं बहुत छोटे ।
रात की
प्रतिमा
सुधाकर ने छुई
पीर यह
फिर से
सितारों सी हुई
आँख का आकाश
ढकने के लिए
प्रीत के जितने सपन हैं
हैं बहुत छोटे।
खोज में हो
जो
लरजती छाँव की
दर्द
पगडंडी नहीं
उस गाँव की
पीर का उपहास
ढकने के लिए
अश्रु के जितने रतन हैं
हैं बहुत छोटे।
</poem>