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<span class="upnishad_mantra">
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः॥८- १५॥
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जिन सिद्धि परम पद पाय लियौ,
तिन जन मुझ मांहीं समाय गयौ.
तिन क्षण भंगुर दुःख रूप जगत,
पुनि जन्म सों मुक्ति पाय गयौ
<span class="upnishad_mantra">आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥८- १६॥</span>
अपि ब्रह्म लोक और लोक सबहिं,
पुनरावृति धर्मा अर्जुन हैं.
मुझ मांहीं लीन कौन्तेय ! जना,
पुनरावृति धर्म विहीनन हैं
<span class="upnishad_mantra">सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः।रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः॥८- १७॥</span>
जग बीते सहस्त्रं चौकड़ी कौ,
ब्रह्म कौ तब दिन एक भयो.
सम काल की रात है ब्रह्मा की ,
योगिन कौ तत्त्व विवेक भयो
<span class="upnishad_mantra">अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके॥८- १८॥</span>
प्राणी सगरे, यहि दृश्य जगत,
ब्रह्मा सों ही उत्पन्न भयौ .
पुनि लीन भयौ, पुनि जन्म भयौ.
अथ क्रम सृष्टि निष्पन्न भयौ
<span class="upnishad_mantra">भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे॥८- १९॥</span>
अस वृन्द ही प्रानिन कौ सगरौ,
आधीन प्रकृति के होय रह्यौ,
निशि में लय, पुनि दिन होत उदय,
पुनि यह क्रम, अर्जुन होय रह्यो
<span class="upnishad_mantra">परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति॥८- २०॥</span>
यहि पूरन ब्रह्म विलक्षण जो,
अव्यक्त सनातन सत्य घन्यो.
जग सगरौ नसावन हारो है,
परब्रह्म ही केवल नित्य बन्यो
<span class="upnishad_mantra">अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥८- २१॥</span>
अव्यक्त जो अक्षर हे अर्जुन!
गति मोरी परम कहावत है,
जेहि पाय नाहीं आवति जग में,
सब पूर्ण काम हुए जावत हैं
<span class="upnishad_mantra">पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया।यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्॥८- २२॥</span>
सब प्राणी ब्रह्म के अर्न्तगत,
जेहि सों परिपूरन जग सगरौ,
सुनि पार्थ! वही परिपूरन ब्रह्म तौ,
भक्ति अनन्य सों है तुम्हारौ
<span class="upnishad_mantra">यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः।प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ॥८- २३॥</span>
जस काल में मानव देह तजे,
तस आवागमन गति पावत है.
अस काल कौ मर्म सुनौ अर्जुन !
अथ मारग कृष्ण बतावत है
<span class="upnishad_mantra">अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः॥८- २४॥</span>
उत्तरायण मारग अग्नि कौ,
दिन, शुक्ल को देव हो अभिमानी.
ब्रह्मयज्ञ को होत प्रयाण यदि,
दिवि लोकहीं जावत है ज्ञानी
<span class="upnishad_mantra">धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते॥८- २५॥</span>
दक्षिरायण मारग धूम निशा,
कृष्ण पक्ष देव हों अभिमानी.
मिलि चन्द्र की ज्योति प्रयाण करै,
पुनि जन्म जो नाहीं निष्कामी
<span class="upnishad_mantra">शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः॥८- २६॥</span>
जग में दुइ मार्ग सनातन है,
पथ कृष्ण व् शुक्ल कहावत है,
पितु लोक सों तो पुनि जनमत हैं,
नाहीं देव के लोक सों आवति है
<span class="upnishad_mantra">नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन।तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन॥८- २७॥</span>
इहि दोनों मारग पार्थ सुनौ,
जेहि ज्ञानी तत्त्व सों जानाति है,
नाहीं मोहित होवत हे अर्जुन!
सम भाव धरौ समुझावति हैं
<span class="upnishad_mantra">वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत् पुण्यफलं प्रदिष्टम्।अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्॥८- २८॥</span>
तप, दान, यज्ञ, और वेद पठन,
कौ फलित पुण्य बतलावत हैं,