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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही / ग़ालिब
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23:54, 25 दिसम्बर 2006
मेरे होने में है क्या रुस्वाई <br>
ये
ऐ
वो मजलिस नहीं ख़ल्वत ही सही <br><br>
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने <br>
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही <br><br>
उम्र
हर चंद के
हरचंद कि
है बर्क़-ए-ख़िराम <br>
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही <br><br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त