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'''झाडू की नीति कथा'''

झाडू बहुत सुबह जाग जाती है<br\>
और शुरू कर देती है अपना काम

बुहारते हुए अपनी अटपटी भाषा में<br\>
वह लगातार बड़बड़ाती है<br\>
’कचरा बुहारने की चीज है घबराने की नहीं<br\>
कि अब भी बनाई जा सकती हैं जगहें<br\>
रहने के लायक.’

० जून १९९०
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