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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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}}
[[Category:कविता]]
<poem>
तुम चाहो तो करूणानिधि यह
खोटा सिक्का भी चल जाये।
तेरे विरहानल में उर का
हर कोना-कोन जल जाये।।1।।

तेरी अहैतुकी करूणा की
यदि सजल घटा उमड़े-घुमड़े।
तो पश्चातापी आँसू में
उर का कल्मष धुल-गल जाये-।।2।।

मुझ पयासे को तेरी कण भर
करूणा होगी गंगा सागर।
ध्रुव-तारा बनो दिशा-विहीन की
बिगड़ी चाल बदल जाये-।।3।।

पापों का ही विशाल बोझा
ढोने का प्रभु अभ्यास हमें।
देखते-देखते कौन जानता
मौत निगोड़ी छल जाये-।।4।।

मत मौन रहो उकसाओ उर में
पीड़ा नयनों में पानी।
रसना से राम-राम रटते
यह ‘पंकिल’ प्राण निकल जाये-।।5।।
</poem>
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