485 bytes added,
14:15, 24 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हारी
तलाश में
कई बार
गिरी हूँ
दलदल में
और हर बार
जाने कैसे
बच निकली हूँ
कमल-सा
मन लिए...।
</poem>