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18:12, 26 जनवरी 2010 '''वे तुम्हारे पास आयेंगे'''
वे तुम्हारे पास आयेंगे.समझायेंगे.<br>
उनके अर्थों में तुम सामाजिक नहीं<br>
हो. तुम नहीं चलते हो उनके पदचिन्हों<br>
को टटोलते हुए. वे तुम्हें बतायेंगे समाज<br>
के माने. वे तुम्हे भय दिखायेंगे.
वे तुम्हे बतायेंगे, तुम विचारों में<br>
जीते हो. विचार व्यवहारिक नहीं<br>
होते. फिर, वे तुम्हे बतायेंगे कि ये<br>
कुण्ठाओं के बदले हुए रूप हैं. तुम<br>
इसका विरोध करोगे. तर्क दोगे.<br>
वे कहेंगे बेमानी. और हंस देंगे<br>
एक खास अंदाज में.
वे बहुत शक्तिशाली हैं. तुमसे भी<br>
अधिक. वे तुम्हें तोड़ने का पूरा<br>
प्रयास करेंगे. वे तुमसे कहेंगे, तुम<br>
पागल हो. सनकी हो. प्रचार करेंगे. वे<br>
तुम्हारा उपहास उड़ायेंगे. तुम्हारी<br>
बातों पर हँसेंगे. वे तुम्हें इसका<br>
एहसास करायेंगे. वे तुम्हारे चतुर्दिक<br>
एक वृत्त बना लेंगे. गिरधर राठी<br>
की ‘ऊब के अनंत दिन‘की तरह.
फिर धीरे धीरे तुम्हें उनकी बातों पर<br>
यक़ीन होने लगेगा. और तुम संकोच<br>
से अपने को सिकोड़ने लगोगे. वे<br>
चाहेंगे कि तुम इतने सिकुड़ जाओ कि<br>
सिफ़र हो जाओ .
____________________________________________23/12/1991