गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 2
6 bytes removed
,
08:25, 16 मई 2007
"ओ विशाल तरु!<br>
शत
सहस्त्र
सहस्र
पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,<br>
कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,<br>
दिन भौंरे कर गये गुंजरित,<br>
Anonymous user
Hemendrakumarrai