'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश जैन |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>मेरी चप्पल '''घिस गई है
मेरी चप्पल<br /> घिस गई हैं अब क्या होगा<br />
इसी सोच में बैठा हूँ मैं
खीझ-खीझ उठता हूँ मैं<br /> उस पर, जिसने<br /> पहली चप्पल बनाई होगी,<br />यदि नहीं बनाता,<br /> तो यह दिन नहीं देखना पड़ता<br />
मुझको, मेरी सारी चिन्ता चप्पल है
नंगे पैरों कैसे चलूं<br /> चलूँ मेरी भी तो कोई इज़्ज़त है<br />
अब क्या होगा
अब खरीदनी ही होगी<br /> चप्पल एक जोड़ी<br /> कतर-ब्यौत करके खर्चों में,<br /> खर्चे, जो<br /> मेरी इज़्ज़त बरकरार रखते हैं. हैं।
'''रचनाकाल:''' : 22/जून1989</1989poem>