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वे बड़े हैं / मुकेश जैन

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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश जैन |संग्रह=वे तुम्हारे पास आएँगे / मुकेश जैन}}{{KKCatKavita}}<poem>वे बड़े हैं '''(वे अपना बड़ा होना बताना चाहते हैं) वे चाहते हैं हम उन्हें सुबह-शाम नमस्ते करें। (वे विश्वविद्यालय के छात्र नहीं हैं)
हमें ध्यान रखना है वे बड़े हैं<br /> कुपित न हों।(::::वे अपना बड़ा होना बताना चाहते हैं)<br /> वे चाहते हैं<br /> हम उन्हें सुबह-शाम नमस्ते करें.<br /> पीटेंगे हमें। (वे विश्वविद्यालय के छात्र वरिष्ट छात्रों की तरह नहीं हैं)<br /> मटियामेट कर देंगे।
हमें ध्यान रखना है वे कुपित न हों.<br /> वे पीटेंगे हमें.<br /> (विश्वविद्यालय के वरिष्ट छात्रों की तरह नहीं)<br /> मटियामेट कर देंगे.<br /> बड़ी सफ़ाई से हफ़्ता वसूली करते हैं।
वे बड़ी सफाई से हफ्ता वसूली जो उन्हें नमस्ते नहीं करते हैं. , ::::दुनिया को उनसे ख़तरा हैवे हमें उनसे मुक्ति दिलाते हैं।
जो उन्हें नमस्ते नहीं करते,<br /> दुनिया को उनसे खतरा है<br />वे हमें उनसे मुक्ति दिलाते हैं.<br /><br />  वे बड़े हैं<br />
(समय-समय पर इसकी याद दिलाते हैं).
 '''रचनाकाल: ''' : 21/फरवरी/2005
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